Poetic thought : talking trees
Saw these dry dead trees early morning on my treck route to Sinhgad fort, Pune.They appeared to me as if they are communicating with eachother .
Poem
वे दोनो
बडे़ आशावादी बंदे थे वे दोनो
...सूखी खालपर स्वप्नील आंखें लिये..
ठिठुरते रात निकालते और भोर सवेर उठ जाते..
फिर सामने उस धूप सेंकते बैठे पहाड़ को ताकते रहते..
न रहकर एकने पूछा..
"ऐसा और कितने दिन?"
..दूसरा बोला.."पहाड़ के ऊपर का वो नीला आकाश जबतक मटमैला नहीं हो जाता तबक! "
उनकी बातें सुनकर पहाड़ का मन पसीच जाता
पहाड़ जानता था उन दोनों को बाड़ के लिये जमीन में ठोका गया है ..
.. वे दोनों मगर अपने हाथ आसमान की और उठाकर प्रार्थना में लग जाते ...
-अविकवी
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