चाँद सी
Poetry by the river । Moon Shayari
गोरी है.. और चांदसा मुख है उसका ..सो मैने सोचा नदीकीनारेसे मेरे साथ चल देगी.. जैसे चांद चलता है अक्सर ..
रात सूहानीसी हो चांदनी वाली तो बात भी निकलती है रूमानी..फीर बात भी हवाओंसी रेशमी बन जाती है.. एक एहसास महकता है खुषबूसा के हरीयाली सिहरती है नदी कीनारोंकी.
देख़ता हूं..कोई तारा टूटता सा आवेग से नदी की और लपकता है..रौशनी की लकीर सी खींचते हुवे फलक पर... और मै ख़्वाहीश पुटपुटाता हूं मन ही मन.. वो साथ चलदे नदी कीनारे से मेरे साथ तो अच्छा..
आसमानी तारा नदी का हो जाता है अब तक.. बहाव की सतह पर सिलवटेंसी नजर आती है और चांद का अक्स बिख़रता दीखाई देता है..
मैं देख़ता रेहता हूं कुछ देर ..सोचता हूं.. चांद मेरे साथ चलें तो अच्छा.. चांदका अक्स फीर जुडता है.. नदी की सतह पर.. मानो वो देख़ रही हो..बडी बडी आंखोंसे..मानो केह रही हो .. चलो नदी कीनारेसे चलते रेहते है..साथ साथ.. मै फीर निकलता हूं....दील में नदी की गहराई लिये.. बहता हुवा...
-अविकवी
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