SARABJEET
Hindi Poetry in respect of a Martyre Satbjeet Singh who died on 2nd May 2013 at Jinnah hospital Pakistan after receiving fetal injuries in jail by fellow prisoners. Allegedly the attack was a plan of a Pak intelligence.
मरकर ही लौटा सरबजीत ….
मैने जलते देखा उसको बाईस इंच टी व्ही पर ।
उसके अपनोंकी आशा की डोर भी जल गयी … जो तेइस साल से तनी रही
दिमाग की नसोमे … अपनो के और सरबजीत के भी …
लोहे का घाव संन्न से गिरा होगा सरपर … जो झुका नहीं था
और यादोंका सिलसला क्षण के लिये थमा होगा … जो अब तक रुका नही था
बस एक क्षण अंधेरा… और आसमान खुला खुला सा नजर आया होगा और
फिर एक बार यादोंकी पतंग फर्रर्र से उडी होगी सरहद पार … …
अपनी जमीन पर कट गिरने की चाह में …
यहां बंदुके धडाधड चली सम्मान में …. सरबजीत के …
और उपर यादोंकी जिंदा पतंग ...छलनी होती रही … वतन के नीले आसमान में
उसके अपनोंकी आशा की डोर भी जल गयी … जो तेइस साल से तनी रही
दिमाग की नसोमे … अपनो के और सरबजीत के भी …
लोहे का घाव संन्न से गिरा होगा सरपर … जो झुका नहीं था
और यादोंका सिलसला क्षण के लिये थमा होगा … जो अब तक रुका नही था
बस एक क्षण अंधेरा… और आसमान खुला खुला सा नजर आया होगा और
फिर एक बार यादोंकी पतंग फर्रर्र से उडी होगी सरहद पार … …
अपनी जमीन पर कट गिरने की चाह में …
यहां बंदुके धडाधड चली सम्मान में …. सरबजीत के …
और उपर यादोंकी जिंदा पतंग ...छलनी होती रही … वतन के नीले आसमान में
लोग केहते रहे …गुर्दे भी काट कर भेज दिया … सरबजीत को
और लहुलोहान जिंदा पतंग … ….
जमीन कि और लपकते हुवे केहती रही,
अब गुर्दे कि नही …. जिगर कि बात करो सरबजीत के …
हां …. मरकर ही लौटा सरबजीत …… तेइस साल बाद …… . मैने जलते देखा उसको बाइस इंच टी व्ही पर ।
-अवि कवी
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